रातों मे नींदें ,
नींदों मे सपने ,
सपनों मे बस एक तू ।
कोई नही है ,
इन लम्हों मे ,
बस एक मै………एक तू ॥
लेके फ़ूलों की खुशबू ,
फ़ूलों के रंग ,
चाँदनी रात मे--भीगी सी राह मे ।
लेके हाथों मे हाथ ,
चलते रहें ,
बस एक मै………एक तू ॥
इन पहाडों के नीचे ,
इस झील मे ,
लेके आँखों मे ख्वाब—छोटी सी नाव मे ।
सर को काँधे पे रख कर ,
बैठे रहें ,
बस एक मै.…………एक तू ॥
Saturday, 6 December 2008
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तुम मेरे लिए रही एक कविता सी
ReplyDeleteअपने आधार से अधिक संकुचित
अपने विस्तार से ज्यादा गहरी.
काव्य सा सौंदर्य लिए बरसाती रहीं मधुरता
गद्य से प्रहार भी जब-तब करती ही रहीं.
कभी तुम्हारे रस का पान किया इन अधरों ने
और कभी चुभ गई कोई बात किसी छंद की भी
किन्तु प्रिये, कई बार ऐसा भी हुआ है
कठिन शैली की कोई कविता समझ नहीं आई मुझे.
बात सिर्फ कविता की होती तो बंद कर देता पुस्तक बड़े आराम से
किन्तु कैसे त्याग दूं तुम्हे अपने जीवन के अनिवार्य विधान से
तुम मेरे लिए रहीं एक कविता सी
तुम मेरे लिए एक कविता सी ........ काश न होतीं !
“M” for manish